गुना। अंचल में गोपाष्टमी का त्यौहार भव्यता से मनाया गया। विराट हिउस, चिंतन मंच, अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद, जनसंवेदना के तहत शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गौमाता की सेवा पूजा भव्यता से की गई। अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद के प्रांतीय प्रमुख कैलाश मंथन ने बताया कि गौशालाओं एवं घरों में गौमाता की विशेष पूजा हुई। अंचल एवं बमोरी क्षेत्र के करीब 250 ग्रामों में गोपाष्टमी को श्री ठाकुरजी कृष्ण कन्हैया के गौरक्षक संकल्प दिवस के रूप में मनाया गया। कैलाश मंथन ने बताया कि ब्रज प्रदेश में आज के ही दिन भगवान कृष्ण की गौचरण लीला प्रारंभ हुई थी। क्षेत्र के बमोरी, परवाह, झागर, बने, लालोनी, कॉलोनी, मगरोडा, ऊमरी, भिडरा सहित प्रमुख धार्मिक सत्संग मंडलों में गोपाष्टमी पर विशेष मनोरथ संपन्न हुए। हिउस प्रमुख कैलाश मंथन ने चिंतन हाउस में गौपूजन करते हुए कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति में सर्वप्रथम गौरक्षा को ही प्रमुखता दी गई है। गौसेवा से सभी देवताओं की पूजन हो जाती है। प्रभु का साकार रूप है गौ की सेवा एवं पूजा। वहीं गोपाष्टमी पर भक्ति केंद्रों पर अन्नकूट महोत्सव के तहत भगवान को महाप्रसादी का भोग लगाया गया। हिउस प्रमुख कैलाश मंथन के मुताबिक अन्नकूट महोत्सव के तहत पिछड़ी बस्तियों में महाप्रसादी के पैकेट वितरण किए गए। श्री मंथन ने बताया कि गोपाष्टमी के दिन से ही भगवान श्रीकृष्ण ने गौरक्षा, गोवर्धन का संकल्प लिया था। इस दिन गौशालाओं एवं घरों में गौवंश की पूजन श्रद्धाभक्ति के साथ होती है। शहर के एक दर्जन प्रमुख स्थानों पर गोपाष्टमी पर भव्य अन्नकूट संपन्न हुए। श्रीनाथ जी के मंदिर में महाराजश्री के सानिध्य में गोपाष्टमी एवं अक्षय नवमीं पर विशेष मनोरथ आयोजित हुए।*
*#जाग्रति दिवस के रूप में मनाई जाएगी देव उठनी ग्यारस*
*वहीं पन्द्रह दिवसीय दीपोत्सव महापर्व की भव्य पूर्णाहूति देव प्रबोधिनी एकादशी पर देव जाग्रत करने के साथ संपन्न होगी। विराट हिन्दू उत्सव समिति के प्रमुख कैलाश मंथन के मुताबिक भारतीय संस्कृति में देव उठनी ग्यारस का विशेष महत्व है। हर शुभ कार्य का शुभारंभ देव प्रबोधिनी से करना विशेष शुभ माना जाता है। प्रत्येक प्राणी में आत्मतत्व विद्यमान है। अंदर सोऐ हुए देव को जाग्रत कर सृष्टि के विकास में सहायक बनना प्रत्येक मानव का कर्तव्य है। आत्मतत्व को जाग्रत करने से ही अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए सनातन धर्म के तहत प्रत्येक परिवार में देवों को जाग्रत कर जीवन की नई शुरूआत की जाती है। देव उठनी ग्यारस के तहत अंचल में भव्य कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। हिउस प्रमुख कैलाश मंथन के मुताबिक सभी धार्मिक केंद्रों पर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाएगी एवं संध्याकाल प्रबोधिनी एकादशी महोत्सव के तहत देवों को जाग्रत किया जाएगा।*
*#गोपाष्टमी पर चिंतन हाउस में आयोजित हुई चिंतन गोष्ठी*
*इस अवसर पर सदर बाजार स्थित चिंतन हाउस में गोपाष्टमी के मौके पर चिंतन गोष्ठी आयोजित हुई। गोष्ठी को संबोधित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय मार्गीय वैष्णव परिषद के प्रांतीय प्रचार प्रमुख कैलाश मंथन ने कहा कि भारतीय संस्कृति में गाय को माता का स्थान दिया गया है। जिस प्रकार माँ अपने बच्चे का लालन-पालन व सुरक्षा करती है, उसी प्रकार गौ का दूध आदि भी मनुष्य का लालन-पालन तथा स्वास्थ्य व सदगुणों की सुरक्षा करते हैं। गाय की पूजा, परिक्रमा व स्पर्श स्वास्थ्य, आर्थिक व आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। गाय को श्रद्धा व प्रेमपूर्वक सहलाते रहने से कुछ महीनों में असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। श्री मंथन ने बताया कि गौ-विज्ञान सम्पूर्ण विश्व को भारत की अनुपम देन है। भारतीय मनीषियों ने सम्पूर्ण गोवंश को मानव के अस्तित्व, रक्षण, पोषण, विकास और संवर्धन के लिए अनिवार्य पाया। गोदुग्ध ने जन-समाज को विशिष्ट शक्ति, बल व सात्तिवक बुद्धि प्रदान की। गोबर व गोमूत्र खेती के लिए पोषक हैं, साथ ही ये रोगाणुनाशक, विषनाशक व रक्तशोधक भी हैं। मृत पशुओं से प्राप्त चर्म से चर्मोद्योग सहित अनेक हस्तोद्योगों का विकास हुआ। श्री मंथन ने कहा कि प्राचीन काल से ही गोपालन भारतीय जीवन-शैली व अर्थव्यवस्था का सदैव केन्द्रबिन्दु रहा है। जीवन के समस्त महत्त्वपूर्ण कार्यों के समय पंचगव्य का उपयोग किया जाता था। विज्ञान व कम्प्यूटर के युग में भी गौ की महत्ता यथावत् बनी हुई है।*
*#गाय परम उपयोगी कैसे ?*
*चिंतन गोष्ठी को संबोधित करते हुए कैलाश मंथन ने कहा कि मानव-जाति की समृद्धि गाय की समृद्धि के साथ जुड़ी है। देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व मूत्र सम्पूर्ण मानव जाति के लिए वरदानरूप हैं। गाय के दूध से निकला घी अमृत’ कहलाता है। स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी राजा पुरुरवा के पास गयी तो उसने अमृत की जगह गाय का घी पीना ही स्वीकार किया: घृतं में वीर भक्ष्यं स्यात्। गाय की महिमा बताते हुए श्री मंथन ने कहा कि गाय के शरीर में ही सूर्यकेतु नाड़ी’ होती है जिससे वह सूर्य की गो किरणों को शोषित करके स्वर्णक्षार में बदल सकती है। स्वर्णक्षार जीवाणुनाशक हैं और रोगप्रतिकारक शक्ति की वृद्धि करते हैं। गाय के दूध व घी में स्वर्णक्षार पाये जाते हैं, जो भैंस, बकरी, ऊँट के दूध में नहीं मिलते।
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