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हे ईश्वर! मेरे देश के लोकतंत्र की रक्षा करो

हे ईश्वर! मेरे देश के लोकतंत्र की रक्षा करो
मोहनलाल मोदी
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव अपने पहले चरण को पूर्ण करने की ओर अग्रसर है। राजनैतिक दलों ने टिकट बांट दिए हैं। उम्मीदवारों द्वारा नाम निर्देशन पत्र दाखिल किए जा चुके हैं। अब कौन मेंडेड के पक्ष में नाम वापस लेता है और कौन बगावत के सुर फूंकता नजर आता है, यह देखना बाकी है। देखा जाए तो बगावत, आपाधापी, भागम भाग आदि, यह सब तभी से प्रचलन में है, जब से दलों ने प्रत्याशियों के नाम घोषित करने शुरू किए थे। जिसे टिकट नहीं मिला वही आक्रामक और कुपित मुद्रा में दिखाई दिया। ज्यादा निराशा हुई तो नेतृत्व को पानी पी पीकर कोसते हुए दल बदल दिया। इंतेहा यह कि जब परिवर्तित दल में भी टिकट नहीं मिला तो तत्काल एक और दल बदल कर लिया अथवा लौट के बुद्धू घर को आए की तर्ज पर बेहिचक घर वापसी भी कर ली। कुल मिलाकर निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु नेताओं की बेशर्मी का नंगा नाच सार्वजनिक तौर पर देखने को मिला। जिस पार्टी ने टिकट दिया वह महान और उसके नेता देशभक्त, बाकी पार्टियां झूठी और जन विरोधी, इसके सिवाय और कुछ भी नहीं। केवल टिकटार्थियों ने ही बेवफाई की हो, ऐसा भी नहीं है। राजनैतिक दल भी अपने कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के प्रति वफादार नहीं रह गए हैं। यह इस चुनाव में बहुत स्पष्टता के साथ देखने को मिला। अधिकांश दलों ने अपने परंपरागत कार्यकर्ताओं का सम्मान किया ही नहीं। उनके स्वाभिमान की भी परवाह नहीं की गई। जहां तक नीति सिद्धांतों की बात है तो उन्हें खूंटी पर टांग कर ही ज्यादातर सियासी फैसले लिए गए। कहा जा सकता है कि जब दलों में ही नीति सिद्धांत शेष नहीं रहे तो फिर टिकटार्थियों में इन सद्गुणों की उम्मीद कैसे की जा सकती है? जहां तक उम्मीदवारों की योग्यता का सवाल है तो अब टिकट बांटने वाले उनके भीतर सदाचार, जनसेवा, देशभक्ति और परोपकार का भाव ढूंढते भी नहीं हैं। अब तो उम्मीदवार के भीतर केवल एक योग्यता तलाशी जाती है और वह होती है येनकेन प्रकारेण जीतने का सामर्थ्य। फिर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह जीत आतंक के बल पर मिल रही है अथवा धनबल, बाहुबल का इस्तेमाल किए जाने पर। यदि प्रत्याशी सारे फरेब करके भी अंततः विजय हासिल करता है तो पर्टियों के लिए वही लाडला और वही सच्चा जनप्रतिनिधि है। तो फिर सवाल यह उठता है की राजनीति में जनहित और सेवा का भाव बचाए कौन? क्योंकि यह शब्द तो अब केवल नेताओं के भाषणों और उनके घोषणा पत्रों में दिखाई मात्र देते हैं। वास्तव में तो जनहित और देशहित अधिकांशतः  ईश्वर भरोसे ही हो गए हैं। सच्चे मायने में किसी के हित सधे हैं तो वह वर्ग केवल सियासतदारों का ही है। प्रत्येक चुनाव के दौरान प्रत्याशियों के द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्रों के माध्यम से पता चलता है जो रोडपति थे, लखपति हो गए। लखपतियों ने करोड़पति होने का तमगा हासिल कर लिया और जो करोड़पति बन गए हैं अब उन्हें अरबपति बनने के प्रयासों में संलग्न देखा जा रहा है। ईश्वर मेरे देश के लोकतंत्र की रक्षा करे।

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