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मोबाइल से नवजात पीढ़ी, युवा पीढ़ी में भटकाव।

                  
                विजय कुमार जैन राघौगढ़ म.प्र.
आधुनिक संचार क्रांति के युग में युवाओं की सोच रचनात्मक होने की अपेक्षा दूषित हो रही है। युवाओं की दिनचर्या में बदलाव आ गया है। प्रतिस्पर्धा एवं बढ़ती महंगाई के दौर में माता पिता की जिम्मेदारी बढ़ गई है।पति पत्नी दोनों नौकरी कर रहे हैं यह उनका शौक नही बल्कि परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवश्यक हो गया है।
पति-पत्नी की व्यस्तता, बदलती जीवन शैली एवं नई सोच ने बालक, माता पिता संबंधों को दिशाहीन बना दिया है। पुराने जमाने की अपेक्षा आज अभिभावक बनना चुनौती पूर्ण कार्य हो गया है।
संयुक्त परिवार होते थे परिवार में 20 से 30 सदस्य साथ रहते थे, संयुक्त परिवार की परंपरा समाप्त हो गई है। एकल परिवार में माता पिता नौकरी करते हैं। परिवार में छोटा बच्चा है तो माता के नौकरी पर जाने की मजबूरी के चलते बच्चे को झूलाघर, नौकर अथवा आया के सहारे दिन भर छोड़ा जाता है। आर्थिक दृष्टि से नौकरी करना उनकी मजबूरी बन गयी है, परिवार में दादा-दादी,ताई-ताऊ चाचा- चाची, भुआ साथ नहीं होते हैं।
                     आधुनिक संचार क्रांति के लगभग सभी उपकरण परिवार में बच्चों को उपलब्ध रहते है टी.व्ही., डेस्कटॉप, लैपटॉप, टेबलेट, मोबाइल आदि के साथ बचपन में बच्चों का अधिकांश समय व्यतीत होता है। आज के पालकों, अभिभावकों, माता-पिता की सबसे बड़ी चिंता है कैसे बच्चों को भटकने से बचाया जाये। समय की मांग है कि उन्हें लैपटॉप एवं मोबाइल दिया जाना चाहिए, छोटे छोटे बच्चे जिनकी उम्र दो या तीन वर्ष होती है वे भी जिद करके मोबाइल चलाते हैं। छोटे बच्चे मोबाइल पर कार्टून आँखें गड़ाकर देखते है, नई पीढ़ी की बचपन से ही नेत्र ज्योति कमजोर हो रही है। चश्मा लगाना मजबूरी हो गयी। बच्चे बड़े होकर कम्प्यूटर चलाते हैं, मगर माता-पिता यह नही समझ पाते कि उनका बच्चा कम्प्यूटर का उपयोग करते करते कब अश्लील गतिविधियों या गलत मित्रों के जाल में फंसकर गलत रास्ते पर बढ़ रहा है। सोशल नेट वर्किंग साइट्स या पोर्न साइट्स देखना वहुत आसान है।माता-पिता सोचते हैं शांति है बच्चे कम्प्यूटर से ज्ञान अर्जित कर रहे हैं। माता-पिता को पता नहीं चलता बच्चे छिपकर कुछ और ही कर रहे हैं।
                     इंटरनेट पर सोशल साइट्स के युवाओं द्वारा उपयोग करने से साइबर अपराध अथवा बुलिंग के प्रकरण बढ़ रहे हैं। एक सर्वेक्षण में अनेक तथ्य प्रकाश में आये हैं। केवल 23% पालकों ने स्वीकार किया कि उनके बच्चे सोशल साइट्स देखते हैं। जबकि 53% बच्चों ने स्वीकार किया कि वे ऐसी साइट्स नियमित रूप से देखते हैं। 1500 भारतीय अभिभावकों व किशोरों पर किये गये गोपनीय सर्वे के अनुसार 20% किशोरों ने स्वीकार किया कि वे एक दिन में कई पोर्न साइट्स देखते हैं। 70% अभिभावकों ने पूरे विश्वास से कहा उनके किशोर बच्चे आँन लाइन क्या कर रहे हैं, इसकी पूरी जानकारी उन्हें देते हैं। जबकि 58% किशोरों ने कहा वे अपने अभिभावकों से आँन-लाइन गतिविधियों की जानकारी छुपाते हैं।
                   मेरे एक मित्र ने नाम न बताने की शर्त पर मुझे जानकारी दी उनकी 15 वर्षीय बिटिया घर से बाहर जाने एवं मित्रों से मिलने से कतराने लगी, पहले उन्होंने ध्यान नहीं दिया, एक दिन सुबह उसकी आँखों पर सूजन देखकर चिंतित हुए, बेटी रोते रोते घबरा गई। उन्होंने ने मनोचिकित्सक को बुलाया। मनोचिकित्सक के बार-बार समझाने पर उसने बताया कोई अनजान व्यक्ति उसे अश्लील ई-मेल भेज रहा है और धमकी भरे काँल कर निरंतर परेशान कर रहा है। उन्होंने ने बेटी का ई-मेल पता बदला तब कई महिनों बाद बेटी सामान्य  हुई।
                   एक अन्तर्राष्ट्रीय कंपनी द्वारा कराये गये सर्वे के अनुसार चीन, सिंगापुर के बाद भारत में साइबर बुलिंग की घटनाएं सबसे ज्यादा हो रही हैं। बाल अपराध भी तीव्र गति से बढ़ रहे हैं। छोटे छोटे बच्चे बलात्कार, हत्या, धोखाधड़ी, लूटमार के मामलों में फंस रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार हर वर्ष 95 हजार से एक लाख बाल अपराधी पकड़े जाते है। जिनमें 35 से 40 हजार लड़के और लगभग 2 से 4 हजार लड़कियाँ होती हैं। 20-25 वर्ष पहले तक बच्चे घर से बाहर मैदान या पार्क में खेलने जाते थे। साइकिल आदि चलाते थे, व्यायाम आदि शारीरक गतिविधियों में व्यस्त रहते थे। मगर अब सब परिवर्तन हो गया है। बच्चे टी.व्ही.,इंटरनेट, वीडियो गेम में व्यस्त हो जाते हैं। तीव्र गति से बढ़ रहे आधुनिक प्रौद्योगिक साधनों से बढ़ती उम्र के वच्चों पर विपरीत प्रभाव हो रहा है। बच्चों में शारीरक मनोवैज्ञानिक, अव्यवहारिक असामान्यताएं बढ़ रही है।
                        एक प्रसिद्ध रिसर्च कंपनी द्वारा ने 18 हजार वरिष्ठजनों जिनमें 6500 पालक, अभिभावक थे सर्वे किया। रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा साइबर बुलिंग सोशल नेटवर्किंग साइट्स जैसे फेस बुक आदि पर होती है। 32% भारतीय अभिभावकों ने स्वीकार किया कि उनके बच्चों के साथ साइबर बुलिंग हो चुकी है। वर्तमान में पालकों
माता-पिता, अभिभावकों को पता है उनके बच्चे साइबर बुलिंग के शिकार हो रहे हैं, अथवा हो गये हैं, वे इसको रोकने, अपने बच्चों को सही मार्ग पर लाने सुनियोजित प्रयास नहीं कर पा रहे हैं। इस सबका दुष्परिणाम यह हो रहा है युवा पीढ़ी का जीवन दिशाहीन हो रहा है अथवा अवसाद डिप्रेशन
में है। यहाँ कुछ ऐसे उपाय सुझाने का प्रयास कर रहे हैं जिनसे पीड़ित को सही मार्ग पर लाया जा सकता है। आपको पता चले कि आपका बेटा या बेटी पोर्न फिल्में देखता है अथवा अश्लील साइट्स देखता है, उसे भूलकर भी न डाटें,उसे अन्य कार्यों में व्यस्त करने का प्रयास करें। बच्चे को एक बार मनोवैज्ञानिक चिकित्सक से अवश्य मिलाये। उसके मित्रों का पता रखें तथा यह ध्यान रखें कहाँ जा रहा है। किन किन से मिल रहा है। बच्चे का डाटना बंद करें। दूसरे बच्चों से अपने बच्चे किया तुलना न करें
इस कार्य से वच्चे के मन में हीन भावना आती है।
वर्तमान में परिवार में नवजात दो एक या दो वर्ष का हो जाता है वह अपनी मम्मी से मोबाइल लेकर मोबाइल चलाने लगता है। मम्मी भी अपनी व्यस्तता में सोचती है, अच्छा है परेशान करने की अपेक्षा मोबाइल पर गेम देखता रहेगा। यही से छोटे छोटे बच्चों में मोबाइल की लत बढ़ जाती है। हाल ही में गुना जिले के जामनेर नगर में एक दिल दहला देने बाली घटना हुई। लगभग आठ या नौ वर्षीय बालक ने अपने पिता से मोबाइल मांगा। पिता द्वारा मना करने पर उक्त बालक ने पिता के मूंह में फेविकोल भरकर मूंह बंद किया। फिर चाकू से कई बार हमला कर पिता की हत्या कर दी। आगरा नगर में विराजमान सुप्रसिद्ध क्रांति कारी जैन संत मुनि सुधा सागर जी से उनके लोकप्रिय जिज्ञासा समाधान टी व्ही प्रसारण में गत दिन मोबाइल के बढ़ते दुरुपयोग से बचने मार्गदर्शन चाहा, मुनिराज ने कहा मोबाइल आज हर परिवार में आवश्यक उपकरण बन गया है। परिवार के सभी सदस्य चाहे बड़े हों या छोटे सभी मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। पारिवारिक आत्मीयता, रिश्ते,नाते सभी को मोबाइल ने समाप्त कर दिया है। सुधा सागर जी ने कहा उनके सानिध्य में हर वर्ष जैन श्रावक संस्कार शिविर सितम्बर या अक्टूबर माह में आयोजित किया जा है। शिविर में सारे देश के हजारों जैन बन्धु दस दिन तक धर्म साधना करते हैं। इस शिविर में दस दिन शिविरार्थियों को मोबाइल का उपवास रहता है। मुनि सुधा सागर जी ने आव्हान किया है समाज विशेष कर युवा पीढ़ी को मोबाइल के दुष्परिणामों से बचाने महिने कम के कम चार दिन मोबाइल का त्याग या मोबाइल के उपवास का वृत लेना समय की आवश्यकता है। परिवार में माता- पिता का दायित्व है कि बचपन से ही बच्चे को क्षमायाचना, साँरी,थैंक्यू, धन्यवाद जैसे शब्द बोलने की आदत डालें। बच्चों को आत्मनिर्भर बनना सिखाये। बच्चों को ज्ञान प्राप्त करने के लिये लैपटॉप, मोबाइल के साथ साथ पत्र पत्रिकाएं पढ़ने की आदत डालें।
नोट:- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।
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