मोहनलाल मोदी
भोपाल। प्रदेश का चुनावी घमासान चरमोत्कर्ष पर है। प्रत्येक दल सत्ता में अथवा उसके इर्द-गिर्द बने रहना चाहता है। किसी भी पक्ष की लहर विशेष इस बार नदारद है। नतीजतन दोनों पार्टियों के दिग्गज बतौर प्रचारक मध्य प्रदेश के प्रवास पर हैं। भाजपा ने चुनावी मैदान में बड़े चेहरों को दांव पर लगा दिया है। सीएम पद के दावेदारों की बात करें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को छोड़कर नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, फगन सिंह कुलस्ते और शिवराज सिंह चुनावी चक्रव्यूह को भेदने में व्यस्त हैं। जबकि सिंधिया बतौर प्रचारक प्रदेश भर की सभाएं संभाल रहे हैं। मतदाता सीएम पद के पुराने चेहरे को लेकर एंटी इनकंबेंसी को हवा ना दे, इसलिए नए चेहरों का बाजार सजाया गया है।
चेहरों की कमी तो कांग्रेस के पास भी नहीं है। लेकिन इस पार्टी में आदिवासी दिग्गज कांतिलाल भूरिया और पिछड़ों के नामचीन नेता अरुण यादव को भाव मिलता ही नहीं। अजय सिंह अपनी ही हार की हताशा से जूझ रहे हैं। दिग्विजय सिंह को प्रदेश का अधिसंख्य मतदाता वर्ग आइंदा मुख्यमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहता। कमलनाथ जीती जिताई सरकार संभालने में असमर्थ रहे। लेकिन गांधी परिवार का उन पर सर्वाधिक भरोसा है।
दोनों पार्टियों के उपरोक्त परिदृश्य को देखें तो भाजपा सत्ता में होने के बावजूद आक्रामक और कांग्रेस विपक्षी तेवरों से हटकर सुरक्षात्मक लड़ाई लड़ती दिखाई देती है। आम आदमी पार्टी इन परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए विधानसभा चुनाव का तीसरा कोण बनने की ओर अग्रसर है। इसकी नजर दोनों मुख्य दलों के मतदाताओं पर है। लेकिन इससे कांग्रेस की ओर जाने वाला विरोध का मत आप के साथ भी बंटेगा। जाहिर है राहत सत्तानशीं भाजपा को पहुंचने की संभावना है। जहां बीजेपी कांग्रेस अथवा इनमें से किसी एक का प्रत्याशी कमजोर पड़ा, वहां आप का भाग्य उदय संभावित है।
सपा का खुला बैर कांग्रेस से है। नाथ की "अखिलेश विखिलेश" ने इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक को विचलित कर दिया है। अब हम हारें या बीजेपी जीते, कांग्रेस का भला नहीं होना चाहिए। सपा इस एजेंडे पर काम कर रही है। वह गठबंधन के तहत वांछित सीटें ना मिलने का बदला इसी चुनाव में चुकाने को उत्सुक दिखाई देती है।
बसपा का विंध्य, बघेलखंड और चंबल में अपना वोट बैंक है। वह जितनी मजबूती पाएगी, कांग्रेस का उतना अधिक नुकसान तय है। यह पार्टी एकला चलो की नीति पर चुनाव लड़ रही है किंतु भाजपा से प्रभावित नजर आती है।
बागी उम्मीदवार अपनी मूल पर्टियों का खेल बिगड़ने तैयार हैं। इनमें से जीताऊ चेहरों पर इनकी मूल पार्टी की पैनी नजर है। जीतने पर इन्हें घर में वापस कैसे लिया जाए, इसके रास्ते ईज़ाद किए जा चुके हैं।
कुल मिलाकर चुनावी गुत्थमगुत्था बेहद नजदीक की है। लिहाजा कोई भी दल अपनी जीत को लेकर आश्वस्त दिखाई नहीं देता। मतदाता भी रहस्यमयी चुप्पी साधकर राजनेताओं की मजे लेता दिखाई दे रहा है।
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