डॉ. राघवेंद्र शर्मा
27 फरवरी 2002 का वह दिन भुलाए नहीं भूलता, जब फैजाबाद की ओर से आ रही साबरमती एक्सप्रेस गुजरात के गोधरा स्टेशन पर पहुंचने को हुई तभी उसके एक डिब्बे को आग के हवाले कर दिया गया। फल स्वरुप उक्त षड्यंत्रकारी वारदात में 59 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। याद दिला दें कि ये सभी मरने वाले राम भक्त कार सेवक थे, जो अयोध्या से भगवान राम लाल के दर्शन करके लौट रहे थे। सर्व विदित है कि एक षड्यंत्र के तहत गोधरा रेलवे स्टेशन के बाहर साबरमती एक्सप्रेस की चेन खींची गई। ट्रेन के रुकने पर बाहर की ओर से उपद्रवियों ने जमकर पथराव किया। जिसके चलते लोगों ने सुरक्षा की दृष्टि से खुद को रेल के डिब्बे में कैद कर लिया। इसी का फायदा उठाकर दंगाइयों ने बाहर से ज्वलनशील पदार्थ अंदर फेंका और फिर उक्त बोगी में आग लगा दी। सभी जानते हैं कि इस सुनियोजित वारदात के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे। जिसे दाहोद हत्याकांड की स्वाभाविक प्रतिक्रिया ही कहा जाएगा। संतोषजनक बात यह रही कि तत् समय गुजरात सरकार की बागडोर श्री नरेंद्र मोदी के हाथों में रही। फल स्वरुप कुशल सत्ता संचालन के चलते गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने बेहद सूझबूझ का परिचय दिया। सदैव ही दंगों को अंजाम देने में लगे षड्यंत्रकारियों को उनके अंजाम तक पहुंचने में श्री मोदी सफल रहे। उक्त घटनाक्रम के दौरान गुजरात की मोदी सरकार आतताइयों को यह संदेश देने में सफल रही कि यहां अब और देंगे सहन नहीं होंगे। सभी को अपनी स्वायत्तता के साथ-साथ दूसरों के अधिकारों का भी ध्यान रखना ही होगा। शायद यही वजह रही कि 2002 के बाद गुजरात को फिर कभी भी दंगों का सामना नहीं करना पड़ा। खास बात यह रही कि 27 फरवरी को तुष्टिकरण की नीति द्वारा पोषित स्वार्थी दंगाइयों के समूह ने जिन राम भक्तों की बलि ली, उससे पूरे देश में एक संकल्प लोगों के मन में घर कर गया। वह यह कि हिंदू इन राम भक्तों के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगे। अब अयोध्या में राम मंदिर हर हाल में बनकर ही रहेगा। इसी के साथ पूरे भारत में एक संदेश चला गया कि यदि देश में अशांति और नफरत का वातावरण पैदा करने वालों को उनके सही अंजाम तक पहुंचना है तो भारतीय सत्ता पर नरेंद्र मोदी जैसी शख्सियत को काबिज करना ही होगा। यही वजह रही की राष्ट्रीयता की सोच से ओतप्रोत संगठनों और राजनीतिक दलों में एक चेतना जागृत हुई। सभी के बीच स्थापित आम सहमति के आधार पर भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को 2014 में लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद हेतु प्रस्तावित कर दिया। जैसा कि मैने लेख के प्रारंभ में उल्लेख किया है कि उस वक्त श्री नरेंद्र मोदी की निर्णायक कार्य प्रणाली ने उनकी क्षमताओं को देशभर के नागरिकों के बीच उजागर कर दिया था। साथ में यह विश्वास भी दिलाया था कि देश को अब ऐसे ही कुशल हाथों की जरूरत है जो तुष्टिकरण की नीति का त्याग करते हुए सबका साथ, सबका विकास और सब का विश्वास का संकल्प लेकर देश को एकात्म भाव में पिरोने का साहस रखता हो। मैं इसीलिए कहता हूं कि 27 फरवरी 2002 के दिन दुष्टों ने जिन कार सेवकों को आग में जलाकर मार डाला था, उनका बलिदान बेकार नहीं गया। यह इस आग से प्रज्वलित राष्ट्रीयता की लौ ही है, जो 27 फरवरी से लेकर अब तक सनातनियों के हृदय में दैदीप्यमान है और उसी के चलते हम अयोध्या के राम मंदिर निर्माण से लेकर राष्ट्र मंदिर के निर्माण की ओर तेजी से अग्रसर हो रहे हैं। हम ऐसा पाते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, भारतीय जनता पार्टी जैसे दल जिस एकात्मक मानव दर्शन की बात करते हैं, वह सब का साथ सबका विकास और सबके विश्वास में समाहित है। यह सोच अब भारतीय उपमहाद्वीप की परिधि को लांघकर वैश्विक स्तर पर मानव मात्र का मार्गदर्शन कर रही है। भारत देश दुनिया के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका में उभर रहा है, तो वह इसीलिए संभव हो पाया कि अनेक राम भक्त सैकड़ो सालों से इसी व्यवस्था को आत्मसात करने के लिए अपने प्राणों की आहुतियां देते चले आ रहे हैं।
अब सवाल यह उठता है कि राम मंदिर का राष्ट्र मंदिर से क्या लेना देना? तो मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि राम तो भारत की आत्मा हैं। राम नाम के बगैर हम एकात्म मानव दर्शन की कल्पना ही नहीं कर सकते। यही तो वह भाव है जिसके चलते हम प्राणी मात्र में परमपिता परमात्मा का अंश देख पाते हैं। इसी के चलते हम पूरी धरती को और उस पर रहने वाले मानव मात्र को एक पारिवारिक सदस्य के रूप में देख पाते हैं, जिसे वसुधैव कुटुंबकम कहा जाता है। यह दर्शन उसी के मन मस्तिष्क में पल बढ़ सकता है, जो राम भक्त है और श्री राम का अनुयायी है। जाहिर है यह भाव सनातन हिंदुओं के हृदय में सदैव ही फलता फूलता रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस भाव को पूरा संसार भी मानता रहा। यही कारण है कि हम पूर्व में भी विश्व गुरु के पद पर आरूढ़ रहे और अब जब एक बार फिर अयोध्या में श्री राम का भव्य मंदिर लगातार भव्यता को प्राप्त हो रहा है, तब उपरोक्त सोच को और अधिक ऊर्जा प्रदान करता दिखाई देता है। यही वह केंद्र स्थल है जहां से भारत वर्तमान और भविष्य में समूचे विश्व को यह संदेश देने जा रहा है कि रामराज का मतलब तुष्टिकरण ना होकर सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास ही है। यदि राष्ट्रीय स्तर पर इस बोध वाक्य का अन्वेषण किया जाए तो इसका यही अर्थ निकलता है कि भारत में कोई भी ना तो साधारण है और ना ही विशिष्ट। हमारे देश के संविधान में विश्वास रखने वाले सभी नागरिक एक समान हैं। भारतीय संविधान को सर्वोपरि मानने वालों को ही स्वयं को भारतीय कहने का अधिकार था है और रहेगा। जो लोग भारत, भारतीयता और उसके संविधान से इतर स्वयं को विशिष्ट समझने का मुगालता पालकर बैठे हैं, उन्हें अपने लिए अन्यत्र बसेरे तलाश लेने चाहिए। हम बड़े सौभाग्यशाली हैं कि बेहद स्पष्ट और पारदर्शी शासन व्यवस्था के तहत हम अयोध्या में श्री राम मंदिर को वैश्विक स्तर पर भारत को विश्व गुरु के पद पर स्थापित करते देख पा रहे हैं। विश्वास के साथ कहता हूं कि यहीं से विश्वास की एक लौ हम सबके मन में उजास पैदा कर रही है, जो राष्ट्र मंदिर के निर्माण का वातावरण निर्मित करती दिखाई देती है। यह सकारात्मक परिदृश्य उन्ही राम भक्तों के बलिदान से संभव हो पाया है जिन्होंने स्वेच्छा से अपने प्राण प्रभु श्री राम के चरणों में अर्पित कर दिए अथवा जिन्हें दुष्ट प्रवृत्तियों से लोहा लेते हुए प्राणों का उत्सर्ग करना पड़ गया। ऐसी सभी हुतात्माओं को मेरा शत-शत नमन।
0 टिप्पणियाँ