शब्दघाेेष, नई दिल्ली: अंतरिक्ष में सफलता का झंडा गाड़ने के बाद अब भारत समुद्र की गहराईयों में भी अपना परचम लहराने की तैयारी में है। पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू ने एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कहा है कि भारत अगले साल के अंत तक यानी 2025 तक वैज्ञानिकों को समुद्र तल से 6,000 मीटर नीचे भेजने में सक्षम हो जाएगा। यह उपलब्धि भारत के समुद्री अनुसंधान क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगी।
मिशन समुद्रयान और मत्स्य 6000 पनडुब्बी:
इस महत्वाकांक्षी मिशन को "समुद्रयान" नाम दिया गया है। मिशन के तहत वैज्ञानिकों को समुद्र की गहराई में ले जाने के लिए विशेष रूप से विकसित स्वदेशी पनडुब्बी "मत्स्य 6000" का इस्तेमाल किया जाएगा। यह पनडुब्बी ना केवल तकनीकी रूप से अत्याधुनिक है बल्कि बेहद मजबूत भी है। यह तीन वैज्ञानिकों को ले जाने में सक्षम होगी और 6,000 मीटर की गहराई तक ले जा सकेगी, जहां सूर्य का प्रकाश भी नहीं पहुंच पाता। मंत्री रिजिजू ने बताया कि "मत्स्य 6000" पनडुब्बी से जुड़ी परियोजना "ठीक रास्ते पर" चल रही है और इस साल के अंत तक इसका परीक्षण कर लिया जाएगा। यह पनडुब्बी अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों से लैस होगी जो समुद्र की गहराई में शोध करने में सहायक होंगे। इसकी सामान्य परिचालन क्षमता 12 घंटे रखी गई है, जिसे आपातकालीन स्थितियों में 96 घंटे तक बढ़ाया जा सकता है।
अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति:
गहरे समुद्र में मानव सहित अभियान अभी तक अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और जापान जैसे कुछ ही देशों द्वारा सफलतापूर्वक संचालित किए जा सके हैं। भारत इस उपलब्धि को हासिल कर एशिया का पहला देश बनने जा रहा है। यह निश्चित रूप से भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता का एक मजबूत प्रदर्शन होगा।
"समुद्रयान" मिशन की सफलता भारत के समुद्री अनुसंधान क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखेगी। इससे न केवल समुद्र तल पर जीवन, खनिज संपदा और भूगर्भिक संरचनाओं के अध्ययन में नए आयाम स्थापित होंगे बल्कि समुद्री आपदाओं की भविष्यवाणी करने और समुद्री संसाधनों के बेहतर प्रबंधन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है। यह मिशन युवाओं को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा और भारत के समुद्री अनुसंधान कार्यक्रम को वैश्विक स्तर पर मजबूत करेगा।
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