छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार में अराजकता और उपद्रव की जो घटना घटित हुई है, वह पुलिस प्रशासन और शासन के लिए बेहद गंभीर सबक का विषय है। उस पर एसपी ऑफिस और कलेक्ट्रेट की जो दुर्गति उपद्रवियों द्वारा की गई, वह तो बेहद ही शर्मनाक वारदात है। यह भी चिंता का विषय है कि उपद्रवियों ने हुड़दंग मचाते वक्त शासकीय और आम लोगों के वाहनों में कतई भेदभाव नहीं किया। जो सामने आता गया उसे स्वाहा करते चले गए। अनियंत्रित भीड़ द्वारा जिला मुख्यालय पर अराजकता फैलाई गई सो अलग। केवल पुलिस और प्रशासन ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ शासन को इस घटना से सबक सीखने तथा इसे अत्यंत गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। क्योंकि अब इस तरह की घटनाएं आम हो चली हैं। बात केवल छत्तीसगढ़ की ही नहीं है। कभी भी किसी भी प्रांत में, यहां तक कि दिल्ली में भी भीड़ द्वारा सरकारी और आम जनता की संपत्तियों को खाक कर दिया जाता है। यहां तक कि बेकसूर लोगों की हत्याएं भी कर दी जाती हैं। भीड़ के रूप में असामाजिक तत्व आते हैं, तबाही मचाते हैं और बेखौफ होकर चले भी जाते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि इन उपद्रवियों के मुख पर कभी नेता का, कभी समाज सेवी का, तो कभी गणमान्य होने का मुखौटा लगा होता है। जबकि यह असलियत अब किसी से छुपी नहीं रह गई है कि विभिन्न छद्मवेशों में सामने आने वाले ये लोग असामाजिक तत्व ही होते हैं। लिखने में कोई संकोच नहीं कि ये वह स्वार्थी तत्व हैं ,जो अपनी सलामती के लिए कभी राजनीति, तो कभी समाज सेवी क्षेत्र में दिखावटी तरीके से सक्रिय बने रहते हैं। जब भी इन्हें मौका मिलता है तब कभी निजी खुन्नस के चलते तो कभी सियासी षड्यंत्र के तहत विध्वंस मचा कर चलते बनते हैं। यदि बलोदा बाजार के घटनाक्रम पर गौर करें तो इसमें सामाजिक विरोध कम, राजनीतिक षड्यंत्र की बू ज्यादा आती है। जहां तक सतनामी समाज की बात है तो वह संगठन केवल इस्तेमाल की वस्तु बनकर रह गया। क्योंकि सड़कों और बाजारों तथा जिला मुख्यालय के हृदय स्थल पर जो कुछ हुआ, वह सतनामी समाज का स्वभाव है ही नहीं। स्पष्ट रूप से लिखा जा सकता है कि जिन्होंने उपद्रव किया वह सतनामी समाज के पुरोधा ना होकर केवल और केवल असामाजिक तत्व ही थे। अतः इनके खिलाफ एक ऐसी कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है, जो भविष्य में इस तरह के समाज विरोधी लोगों के लिए एक सबक साबित हो सके। इसके लिए आवश्यक है कि उपद्रवियों की पहचान करके उनकी जल्दी से जल्दी गिरफ्तारियां हों और उचित यही है कि स्वयं सतनामी समाज को आगे आकर इस कार्य में पुलिस प्रशासन और सरकार की मदद करनी चाहिए। क्योंकि बलौदा बाजार के जिला मुख्यालय पर घटित उक्त घटना ने पुलिस प्रशासन और इस समाज की प्रतिष्ठा विश्वसनीयता को गहरा धब्बा लगाया है। समय की जरूरत है, जिसके चलते सतनामी समाज, पुलिस, प्रशासन और सरकार को आपसी विश्वास बरकरार रखते हुए मिलजुल कर कार्य करना चाहिए। याद रहे, सतनामी समाज के नाम पर जो कुछ भी सार्वजनिक रूप से घटा, उसने किसी एक कि नहीं बल्कि इस मामले से संबंधित हर एक पक्ष की विश्वसनीयता और उसकी छवि पर बट्टा लगाया है। अब यह तभी सहज हो सकते हैं जब लोक संपत्ति और तंत्र की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाने वाले हर शख्स को सीखचों पीछे भेज दिया जाए। इस बात में कोई संदेह नहीं कि सतनामी समाज के धार्मिक स्थल पर जो कुछ भी हुआ वह असहनीय है। वहां जिन लोगों ने भी तोड़फोड़ की, उन्हें उसकी कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। किंतु यह भी सही है कि बलोदा बाजार जिला मुख्यालय पर आंदोलन के नाम पर जो कुछ हुआ, वह अलौकतांत्रिक कृत्य ही था। अतः दोनों ही स्थान पर उपद्रव करने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई अपेक्षित है। इनमें से किसी भी एक व्यक्ति के साथ रियायत नहीं बरती जानी चाहिए।
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