आज जब देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का नेता चुना गया तब उन्होंने उस बात का जिक्र किया, जिसका 24 घंटे पहले शब्दघोष खुलासा कर चुका था। उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि -
"जब चार जून के नतीजे आए तो मैं काम में व्यस्त था। बाद में फोन आना शुरू हुए। मैंने कहा कि ये आंकड़े तो ठीक हैं, ये बताओ कि EVM जिंदा है या मर गया? क्योंकि ये लोग तय करके बैठे थे कि भारत के लोकतंत्र और लोकतंत्र की प्रक्रिया से लोगों का विश्वास उठा दिया जाए। ये लगातार EVM को गाली देते रहे। ये ईवीएम की अर्थी निकालने की तैयारी में थे"।
गुरुवार को शब्दघोष द्वारा जारी किए गए कंटेंट में यह सवाल उठाया गया था कि जो विपक्ष चुनाव से पहले ईवीएम को कलंकित, पक्षपाती और बेईमान बता रहा था, अब वह रहस्यमयी चुप्पी साध कर बैठा हुआ है। यह चुप्पी साबित करती है कि कांग्रेस सहित उसकी सहयोगी पार्टियों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर जो कुछ भी कहा गया, वह अनर्गल प्रलाप भर था। लेकिन चुनाव आयोग और भारत की न्यापालिका को इस बाबत संज्ञान लेने की आवश्यकता है। क्योंकि इनके द्वारा चुनाव आयोग से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक सवाल उठाए गए और हर तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को कलंकित कहा गया। लेकिन अब जैसे ही इंडिया गठबंधन का वोट प्रतिशत बढ़ा, वैसे ही उसने चुपचाप इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के आंकड़ों को स्वीकार कर लिया और इसे अपने संघर्ष का परिणाम साबित करने में जुट गया। यहां सवाल उठता है कि जब जब कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां बुरी तरह हारती हैं तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को गालियां देने लगती हैं। जब कभी भी इन्हें हारने की आशंका सताती है तो ये पहले से ही इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर उंगलियां उठाना शुरू कर देतेहैं, ताकि प्रतिकूल परिणाम आने पर हार का ठीकरा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के सिर फोड़ा जा सके। इस आम चुनाव में भी इनके द्वारा कुछ ऐसा ही किया गया। खासकर राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पूरे चुनाव के दौरान भाजपा से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के ख़िलाफ़ अनर्गल प्रलाप करते रहे। लेकिन अब जब उनकी पार्टी के नेता अपनी बढ़त देखकर संतुष्ट होकर बैठ गए हैं तो दिग्विजय सिंह के मुंह पर भी ताला लग गया है। यह और बात है कि स्वयं दिग्विजय सिंह चुनाव हार चुके हैं। अपने कल के कंटेंट में शब्दघोष ने यह स्पष्ट कर दिया था की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर विपक्षी नेताओं का आचरण कुछ ऐसा है, जैसा एक असफल पति का व्यवहार अपनी बेगुनाह पत्नी के प्रति ज्यादती भरा हो जाता है। जैसे सामने खड़ी अपनी पत्नी से पति पूछ रहा हो कि बता तेरे बच्चों का बाप कौन है ? जाहिर है यह सवाल करके वह अपनी पत्नी की पवित्रता पर सवालिया निशान अंकित कर रहा होता है। कारण सिर्फ इतना सा है कि उसे अपनी पत्नी द्वारा उत्पन्न किए गए बच्चों की शक्ल, रंग रूप, डील डौल पसंद नहीं आ रह हैं। इसलिए वह अपनी पत्नी को कभी कुल्टा तो कभी बदचलन कहता है। मजेदार प्रसंग यह है कि इस बार पत्नी ने जो बच्चा जन्मा है, वह पति को अच्छा लग रहा है तथा उसने उक्त बच्चों को अपनी गोद में भी बिठा लिया है। क्योंकि इस बार का बच्चा उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप पूरी तरह भले ही अनुकूल ना हो, लेकिन उसका रंग रूप और डील डौल काफी हद तक रास आ रहा है। मजे की बात यह है कि इन परिस्थितियों में वह व्यक्ति अपनी नई संतति को तो अपना रहा है, किंतु पत्नी को लेकर अभी भी उसका मत स्पष्ट नहीं है। उसकी समझ में नहीं आ रहा है कि कल तक वह जिसे कुलटा और कलंकिनी कह रहा था, अब उसे सती सावित्री कहे तो कहे कैसे ?
पूरी बात इस लिंक पर क्लिक करके भी समझ सकते हैं -
https://youtu.be/s8Dz2s-_1rw?si=l5YdFObUK-NmiZKH
लगभग यही हालत आज कांग्रेस समेत उसके साथी दलों की है। यह लोग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को इतना ज्यादा गरिया चुके हैं कि अब अनुकूल परिणाम प्राप्त होने पर भी उसकी तारीफ करने से बच रहे हैं। क्योंकि वह जानते हैं कि ऐसे में वे हंसी के पात्र बन सकते हैं। लेकिन इसे उनके कर्मों का फल ही कहा जाएगा कि अब भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर लगाए गए अनर्गल आरोपों को लेकर उन्हें हंसी का पात्र ही बनाया जा रहा है। जैसा कि आज श्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने धन्यवाद भाषण में इस बात का पूरे व्यंग्य और विनोद के साथ उल्लेख किया।
वैसे आम जनता का कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों से यह सवाल तो बनता है कि अंततः अब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के बारे में उसकी क्या राय है। हालांकि शब्दघोष दावा करता है कि उस ओर से किसी भी प्रकार का जवाब आना असंभव ही है। क्योंकि यदि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को सही ठहराते हैं तो वे खुद झूठे साबित होते हैं, और यदि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को गलत साबित करने की पुनः कोशिश होती है तो फिर यक्ष प्रश्न यह उठता है कि इसी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा प्रदत्त आंकड़ों के आधार पर उक्त दलों के नेता सांसद बनकर इठलाते क्यों घूम रहे हैं। यदि मशीन गलत है तो फिर उसके आधार पर निर्वाचित उक्त दलों के नेताओं को अपने सांसद पद से तत्काल इस्तीफे दे देने चाहिए। जाहिर है इन लोगोंके लिए यह सब करना भी काफी कठिन है। तो फिर एक जागरूक नागरिक होने के नाते अवसरवादी नेताओं से केवल इतना ही कहा जा सकता है कि उन्हें बोलने से पहले आइंदा थोड़ा बहुत सोच लेना अवश्य चाहिए। ताकि भविष्य में फिर कभी हंसी का पात्र न बन जाना पड़े।
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