मोहनलाल मोदी
एक बहुत पुरानी कहानी है। संभवत मेरी उम्र के सभी लोगों ने उस कहानी को सुना होगा और अपनी प्राथमिक शिक्षा की पाठ्य पुस्तकों में पढ़ा भी होगा। इसमें चरवाहा एक झूठ बोलने वाला पात्र है, जो रोजाना अपने मित्रों को झूठ बोलकर डराता है। वह रोजाना "भेड़िया आया भेड़िया आया" कहकर सबको भरमाता राहता है। लेकिन एक समय ऐसा भी आता है जब वाकई में भेड़िया आ जाता है और वह उस चरवाहे को खा जाता है, जो अब तक झूठ-मूट का "भेड़िया आया भेड़िया आया" का शोर मचा रहा था।
भेड़िया को उसे मारना इसलिए भी आसान हो गया, क्योंकि उसने "भेड़िया आया भेड़िया आया" का इतनी बार झूठ बोला था कि जब वाकई में भेड़िया आया तब उसने मदद के लिए सच्ची गुहार लगाई और चिल्लाया भी, "भेड़िया आया भेड़िया आया"। लेकिन तब उसकी बात पर किसी ने यह सोचकर विश्वास नहीं किया कि आज भी वह चरवाहा झूठ बोलकर हमें बेवकूफ ही बना रहा है। अंततः उसे मौत का ग्रास बन जाना पड़ा।
यह कहानी हमें सीख देती है कि जो लोग बात-बात पर झूठ बोलते हैं, वह एक दिन समाज की नजरों में इतना गिर जाते हैं कि फिर जब वह कभी धोखे से भी सच बोलते हैं तो उनकी बात का विश्वास नहीं किया जाता। अंततः उनका बड़ा नुकसान हो जाता है। लेकिन मेरे आज के लेख का विषय इस कहानी के ठीक विपरीत है। उसे जानने के लिए हमें भारत के वर्तमान परिदृश्य पर घट रहे एक विशेष घटनाक्रम पर गौर करने की आवश्यकता है।
विगत लंबे अंतराल से यह देखने में आ रहा है कि भारत के विभिन्न प्रांतो में विभिन्न संस्थाओं को बम से उड़ाने की धमकियां लगातार मिल रही हैं। इन धमकियों के माध्यम से कभी चेतावनी दी जाती है कि अमुक हवाई अड्डा बम से उड़ा दिया जाएगा, अमुक ट्रेन में बम रखा है, फलां स्कूल में ब्लास्ट होने वाला है, किसी ऑफिस को ब्लास्ट किए जाने की तैयारी है। इस प्रकार की धमकियां लगातार मिल रही हैं और यह थमने का नाम नहीं ले रहीं। लेकिन इनकी जांच किए जाने पर यह धमकियां बिल्कुल अफवाह साबित होती हैं और जांच एजेंसियों का कीमती समय अकारण ही जाया होता रहता है।
कभी कोई किशोर पकड़ में आ जाता है तो कभी अच्छा खासा व्यक्ति गिरफ्तार होने पर कह देता है कि उसने मजाक में अथवा जान बूझकर फेमस होने के लिए यह अफवाह उड़ा दी थी। अंततः कानूनी कार्रवाई के बाद अब तक ऐसे अनेक लोगों को पकड़ने के बाद चेतावनी देकर छोड़ा जा चुका है। संभव है कुछ लोग अभी भी पुलिस की गिरफ्त में बने हुए हों। आज भी समाचार पत्र में दिल्ली के 15 म्यूजियमों को बम से उड़ाने की धमकी के बारे में पढ़ा तो एक बारगी मन में यह प्रश्न कौंधा कि ऐसा निरंतर घटित होते चले जाना कोई दीर्घकालीन षड़यंत्र का हिस्सा तो नहीं है?
जैसे - उपरोक्त कहानी में एक चरवाहा केवल अपने अनुचित मनोरंजन के लिए "भेड़िया आया भेड़िया आया" का शोर मचाता है और एक दिन सचमुच भेड़िया आकर उसे खा जाता है। यदि इस कहानी के ठीक उलट जाकर सोचें कि वह चरवाहा एक षड्यंत्र के तहत लंबे समय तक "भेड़िया आया भेड़िया आया" का शोर मचाता रहे, और जब उसे भरोसा हो जाए कि अब कोई भी उसके शोर को गंभीरता से नहीं ले रहा है, तब वह पूर्व नियोजित षड्यंत्र के तहत भेड़िए को समाज के बीच उतार दे तथा वह नुकसान करने में सफल हो जाए जो उसने मन में सोच कर रखा हुआ हो! कहानी का यह दूसरा पक्ष इसलिए सार्वजनिक करना पड़ा, क्योंकि दुश्मन देशों और खासकर आतंकवादी संगठनों को भारत का तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर होना पच नहीं रहा है। फल स्वरूप ऐसे तत्व कभी तीर्थ यात्रियों की बस पर हमला कर देते हैं तो कभी सुरक्षा बलों की पीठ में छुरा भोंकने का कायरता पूर्ण प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं। लेकिन हर बार इन भारत विरोधी ताकतों को मुंह की खाना पड़ रही है। यही वजह है कि यह लोग सीधे-सीधे लड़ाई ना लड़कर अपरोक्ष युद्ध लड़ने में संलग्न बने रहते हैं। इन मंशाओं को पूरा करने के लिए कभी भारत में आतंकवादी भेजे जाते हैं तो कभी सीमा पर गोलीबारी की जाती है, जो फिलहाल तो बंद बनी हुई है। क्योंकि जहां से यह सब होता है, वहां फिल वक्त खाने के लाले पड़े हुए हैं और वैश्विक स्तर पर भी आतंकवाद निर्यात करने वाले इस देश की छवि तार तार हो चुकी है। अतः यह खुलकर कुछ भी करने से तो रहा।
अतः आशंका व्यक्त किया जाना गैर जरूरी नहीं लगता। संभव है बम लगाने और ब्लास्ट करने की धमकियों के माध्यम से भारत में एक ऐसा माहौल बनाने का षड्यंत्र रचा जा रहा हो कि लगातार मिल रही झूठी धमकियों से तंग आकर एक समय ऐसा आ जाए, जब देश की सुरक्षा एजेंसियां और यहां के सुरक्षा बल इन धमकियों को हल्के में लेते हुए उन्हें नजरअंदाज करना शुरू कर दें। जैसे ही देश विरोधी तत्वों को यह भरोसा हो जाए कि अब बम ब्लास्टों की सूचनाओं अथवा धमकियों को यहां सामान्य तरीके से लिया जाने लगा है, संभव है वैसे ही वे अपने मंसूबों को कामयाब करने हेतु कोई बड़ा कुचक्र रचने में सफल हो जाएं ! संभव है शत्रु ऐसा ही कोई षड्यंत्र विचारकर भविष्य की तैयारी में जुटे हुआ हो।
हालांकि हमें अपने देश की सुरक्षा एजेंसियों, जांच एजेंसियों और सुरक्षा बलों की सामर्थ्य पर जरा भी संदेह नहीं, फिर भी शत्रु की कायरता पूर्ण हरकतों को हम विगत कई वर्षों से देखते चले आ रहे हैं। विभिन्न आतंकवादी घटनाओं में हम हजारों बेकसूर लोगों की जान से हाथ धो चुके हैं। ऐसे में हमें लगातार सामने आ रहीं इस तरह की धमकियों और सूचनाओं को सदैव ही गंभीरता से लेने की आदत को बनाए रखना होगा। इस बाबत भी छिद्रान्वेषण किए जाने की आवश्यकता है कि भारतीय समाज में इस प्रकार की अफवाहों को धमकियों और सूचनाओं के रूप में फैलाने का दौर आखिर चल क्यों रहा है?
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