हर पत्रकार के जीवन में एक क्षण ऐसा आता है जब उससे अपेक्षा की जाती है कि वह दबंगों असरदारों की कमियों को अनदेखा करते हुए केवल और केवल उनके पक्ष में ही लिखे अथवा बोले। लेकिन जब वह ऐसा नहीं करता तब उसे हर प्रकार से नीचा दिखाने के अवसर तलाशे जाते हैं। मसलन - दबंग असरदारों द्वारा उसके खिलाफ पुलिस में शिकायतें की जाती हैं। मानहानि के नोटिस भेजे जाते हैं। यदि समाचारों अथवा लेखों से संबंधित व्यक्ति सत्ता के मद में चूर है तो वह पत्रकार पर हर प्रकार के जायज और नाजायज दबाव डालने के हर संभव दांव पेंच अपनाता है। यहां तक कि पत्रकार से उसके द्वारा लिखे अथवा कहे गए कंटेंट को लेकर खंडन की फरमाइश तक की जाती है। इनमें से कुछ भी मांग पूरी न होने पर पत्रकार को आतंकित भी किया जाता है, ताकि उसे घुटनों के बल लाया जा सके। अब यह बात और है कि एक स्वाभिमानी पत्रकार सही होने पर मरना पसंद करता है, खंडन करना नहीं। किंतु कभी-कभी स्थितियां इस कदर विकट, गंभीर, भय युक्त, बना दी जाती हैं कि कुछ नए अथवा अनुभवहीन पत्रकार इनके चंगुल में फंस जाते हैं। फिर शुरू होता है इनका अंतहीन शोषण। ऐसा ही एक वाक़या मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिला अंतर्गत ब्यावर शहर में देखने को मिला। यहां एक पत्रकार ने मुस्लिम त्यौहार के तारतम्य में आयोजित एक बैठक का कवरेज किया। इत्तेफाक से पत्रकार भी मुसलमान ही था। जाहिर है वह उक्त घटनाक्रम से किसी न किसी प्रकार अवगत भी रहा होगा। नतीजतन उसने उक्त बैठक में लिए गए निर्णयों से असंतुष्ट सजातीय लोगों के कथन को आधार बनाकर एक खबर यूट्यूब चैनल पर प्रसारित कर दी। बस फिर क्या था, सत्ता पक्ष से संबंधित एक हुक्मरान का गुस्सा ही फट पड़ा। उसने अनौपचारिक रूप से उक्त गैर अनुभवी पत्रकार की जो दुर्गति बनाई, उसके प्रमाण तो फिलहाल उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन हां इस आशय की खबरें प्राप्त है कि उक्त पत्रकार के खिलाफ पुलिस में अनौपचारिक शिकायत की गई। उसे विभिन्न तरीकों से धमकाया, आतंकित किया गया। स्टांप पेपर के ऊपर उससे माफी नामा लिखाया गया। इससे भी मन नहीं भरा तो उक्त पत्रकार के कैमरे पर, उसकी आईडी पर, उसी के खिलाफ अनर्गल प्रलाप किया गया और उक्त कंटेंट को उसके यूट्यूब चैनल पर प्रसारित करने के लिए उसे मजबूर भी किया गया। खेद की बात यह है कि जिस पत्रकार के खिलाफ यह कार्यक्रम रिकॉर्ड किया गया वह उसी के चैनल पर ब्रॉडकास्ट भी हो गया। तब भी राजगढ़ जिले की पुलिस और प्रशासन की समझ में यह बात नहीं आई कि उनके कार्य क्षेत्र में आखिर चल क्या रहा है। यह सवाल इसलिए भी उठता है, क्योंकि इस पूरे मामले से ब्यावरा पुलिस पूरी तरह वाकिफ है और एफआईआर के बगैर, केवल एक लिखित आवेदन के आधार पर लगातार अपनी एक तरफा पक्षपात पूर्ण सक्रियता दर्ज कराती रही है। उसी के पेशेवर रवैये से आतंकित होकर उक्त नवयुवक पत्रकार को एक प्रकार से थूक कर चाटना पड़ा। एफिडेविट पर माफी नामा लिखना पड़ा, हाथ जोड़कर, गिड़गिड़ाकर, याचना करते हुए क्षमा मांगना पड़ी। यही नहीं, अपने कैमरे से, अपनी आईडी पर, अपने ही खिलाफ एक कार्यक्रम रिकॉर्ड करके, उसे अपने ही युटुब चैनल पर प्रसारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
यह सब कितना असहनीय और पीड़ा दायक हुआ होगा, इसे एक पत्रकार ही भली भांति समझ सकता है और सभी पत्रकारों को इसे गौर से समझाना भी चाहिए। क्योंकि ऐसे क्षण लगभग हर पत्रकार के जीवन में आते ही हैं। यह बात और है कि स्वाभिमानी पत्रकार इन सभी झंझावातों से जूझते हुए अंततः सत्य की विजय प्रतिपादित कर दिखाते हैं। किंतु हमेशा ही सब कुछ अनुकूल नहीं होता। कभी-कभी स्थितियां विकट और गंभीर भी हो जाती हैं। इतनी विकट, कि कई बार पत्रकारों को आत्महत्या करते भी देखा गया है। गौर करने लायक बात यह है कि यदा कदा ही सही, यह सब इसलिए संभव हो पता है, क्योंकि पत्रकार जगत एकजुट नहीं है। इसमें भी किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि जब कभी भी, असामाजिक तत्वों को, सटोरियों को, सटोरिया से नेता बने अवसरवादी लोगों को, किसी पत्रकार का अनिष्ट करना हो, तब उसे अकेला करके तथा पूरी तरह से घेर कर ही मारा जाता है।
इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है। सत्ता पक्ष से संबंधित दबंग व्यक्ति द्वारा पहले यह सुनिश्चित किया गया कि अमुक पत्रकार अभी एक प्रकार से नया और जूनियर ही है। अतः इसके बीच में कोई अन्य पत्रकार नहीं बोलने वाला। अंततः वह लोग सही साबित हुए। वाकई में इतना सब कुछ घटित हो जाने के बावजूद भी कोई पत्रकार बीच में नहीं बोला। शायद यह सोच रही होगी कि इससे हमारा क्या लेना देना? हमारा तो कुछ बिगड़ा ही नहीं! फिर हम दूसरे के फटे में टांग क्यों फंसाएं? बस यही वह सोच है जो हम सभी पत्रकारों पर भारी पड़ती है। जिसके चलते असामाजिक तत्व, गुंडे, मवाली, जुआरी, सटोरिया नेता, कभी भी अपने पत्रकारिता विरोधी मंसूबों में सफल हो जाते हैं। और स्वयंभू वरिष्ठ पत्रकार इसी अकड़ में मुगालता पाले हुए रहते हैं कि होगा कोई उठाई गिरा पत्रकार? जब हमारे खिलाफ कुछ होगा तब बताएंगे, पत्रकारिता क्या होती है। बस इसी प्रकार एक के बाद एक का नंबर लगा रहता है और जो परिस्थिति वश बचे हुए हैं, वह ऐसे ही गलत मंसूबे पालकर संभावित जानलेवा संकटों से अनभिज्ञ बने रहते हैं। नतीजा, जब हम स्वयं घिरते हैं तब समझ में आता है कि तत्समय हमारी भी वही स्थिति होती है अथवा कर दी जाती है, जो अभी उन पत्रकार साथियों की है, जिन्हें हमारे और आपके सहारे की अति आवश्यकता है।
आपका ही
मोहनलाल मोदी
शब्दघोष
E- 35 / 45 बंगले
होटल पलाश के सामने
टी टी नगर भोपाल
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