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sex education के मामले में western country से भी ज्यादा advance रहा है हमारा India



मोहनलाल मोदी।
भारत एक ऐसा देश है, जहां पर सदियों से ही नहीं बल्कि युगों से सेक्स के बारे में खुलकर बात कही जाती रही है। वह भी तब जबकि पश्चिमी देश सभ्यता को समझने का प्रयास कर रहे थे। उस वक्त हमारे यहां कामसूत्र रचा जा चुका था। मध्य प्रदेश के खजुराहो में काम और संभोग से सबंधित विशाल मंदिर स्थापित किया जा चुके थे। सेक्स के मामले में हम अपने को पिछड़ा कैसे मन लें, जबकि भारतीय सभ्यता में काम को अर्थ धर्म और मोक्ष से जोड़कर देखा जाता रहा है। यही नहीं भारतीयों ने सेक्स के देवता कहे जाने वाले कामदेव को पूजा के योग्य माना है, द्वापर में जिसे श्री कृष्ण का पुत्र होने का गौरव प्राप्त हुआ, ऐसा हमारे धर्मशास्त्र बताते हैं। आज इस भारत में स्कूलों में यौन शिक्षा दिए जाने के मामले को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म बना हुआ है। यह अफवाहें भी इसलिए ज्यादा फैल रही है, क्योंकि इस बेहद गंभीर मसले पर राजनेता और बुद्धिजीवी लोग एक अदद स्वस्थ बहस से बचने का उद्यम कर रहे हैं। बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पास्को एक्ट के तहत प्रचलित एक प्रकरण में फैसला सुनाते हुए यह मंशा जाहिर की थी कि यौन शिक्षा दिया जाना अब समय की मांग है। सरकार को इस गंभीर मसले पर सारगर्भित निर्णय लेने की और कदम बढ़ाने चाहिए। सूचना यह भी मिल रही है कि यौन शिक्षा को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए या नहीं, इस बाबत सरकार राय मशवरा करने का मन बना रही है। भविष्य में यौन शिक्षा स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल हो पाएगी या नहीं, अथवा सरकार और प्रबुद्धजन इस बारे में क्या निर्णय लेंगे? यह अभी भविष्य के गर्भ में है। क्योंकि जब तक सामाजिक स्तर पर इस मसले के अंतर्गत एक स्वस्थ बहस शुरू नहीं हो पाती, तब तक किसी भी सकारात्मक परिणाम की अपेक्षा किया जाना बेमानी ही है। विडंबना यह है कि कुछ रूढ़िवादी भ्रांतियां के चलते भारत के अधिकांश लोग यौन शिक्षा पर बात करने से बचते हैं। इस विषय पर बातचीत करना उन्हें शर्मिंदगी का कारण लगता है। 
यही नहीं, यदि कोई इस तरह की बातचीत का आरंभ भी करे तो उन प्रयासों को गंदी बात कहकर हतोत्साहित कर दिया जाता है। फल स्वरुप बेहद लंबे समय से सामाजिक वातावरण में यह सवाल तैर रहा है कि स्कूलों में यौन शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए या नहीं। लेकिन अभी तक हम किसी भी सारगर्भित निर्णय तक नहीं पहुंच पाए हैं। कारण सिर्फ एक ही है और वह यह कि कोई भी इस मसले पर खुलकर बहस करना नहीं चाहता। तो फिर सवाल यह उठता है कि हमें क्या करना चाहिए। इसका जवाब तलाशने से पहले हमें उन कारणों पर गौर करना होगा जिनके चलते अब यौन शिक्षा को लेकर माहौल तनाव युक्त होता जा रहा है। यदि प्रतिदिन समाचार पत्रों में प्रकाशित यौन अपराध संबंधी खबरों की सूची बनाएं तो हम पाएंगे कि देश में बलात्कार, बलात्कार के प्रयास, यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। सबसे ज्यादा गंभीर बात तो यह है कि अब बतौर आरोपी नाबालिगों, किशोरों के नाम यौन अपराधों में बढ़ते ही चले जा रहे हैं। इसके पीछे का करण यह माना जा रहा है की सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और इंटरनेट पर अश्लील सामग्री प्रचुर मात्रा में फैली हुई है। कोई भले ही इन्हें सर्च ना करें लेकिन नाजुक उम्र के किशोरों पर गिद्ध दृष्टि जमाए बैठी बड़ी-बड़ी कंपनियां पोर्न वीडियोज, स्टोरीज, पिक्चर्स आदि के ढेर लेकर बैठी हुई हैं। एक बार कोई इनके चक्कर में फंस जाए तो फिर वह शख्स इस पोर्न के जंजाल में लगभग फंसता ही चला जाता है। इस व्यापक जंजाल में सबसे ज्यादा दुर्गति उन लोगों की होती है जो नाबालिग हैं और जिन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं होता। इन नासमझ लोगों को यहां से जो उत्तेजना प्राप्त होती है वह इन बालकों और किशोरों को गलत कार्य करने की प्रेरणा देती है। फल स्वरुप यह लोग वो सारे कृत्य वास्तविक तौर पर करना चाहते हैं, जो इनके द्वारा इंटरनेट पर आपत्तिजनक सामग्री को पढ़कर अथवा देखकर अभी तक केवल महसूस किया होता है।
लिखने का आशय है कि सभ्य समाज भले ही यौन शिक्षा के बारे में सार्वजनिक स्तर पर बात करने से हिचकिचाए, लेकिन वास्तविकता तो यही है कि इस बारे में बच्चों को गलत शिक्षा मिलना शुरू हो चुकी है। इस बात को भी अब नकारा नहीं जा सकता की अधिकांश अभिभावकों ने बाल्यावस्था से ही अपनी संतति को मोबाइल का आदी बना दिया है। हद तो यह है कि चार और पांच साल के बच्चे यदि व्यस्तता के दौरान माता-पिता को डिस्टर्ब करते हैं तो उनके हाथों में तत्काल मोबाइल थमा दिया जाता है। मतलब साफ है, अब बच्चों और किशोरों के हाथ में सहज ही मोबाइल उपलब्ध हैं। जिस दिन भी इन अनुभवहीन बच्चों की उंगलियां किसी गलत लिंक पर स्पर्श कर गईं, या फिर इन्होंने किसी गलत प्लेटफार्म को कमान्ड दे दी, समझ लीजिए बच्चा पॉर्न वर्ल्ड के जंजाल में उलझते चले जाना है और ऐसा हो भी रहा है। यहीं से बच्चों को यौन व्यवहार की गलत सूचनाएं मिलना शुरू हो रही हैं। फल स्वरुप बलात्कार, बलात्कार के प्रयास जैसे गंभीर यौन अपराधों में बच्चों और किशोर की भागीदारी शर्मनाक और चिंताजनक तरीके से बढ़ रही है। इस गलत शिक्षा के जवाब में यदि हम यौन शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करते हैं, तो जिस प्रकार बच्चे गुड टच और बेड टच के बीच का अंतर समझने लगे हैं, वैसे ही उन्हें यह समझ विकसित करने का अवसर भी मिलेगा कि यौन शिक्षा के तहत प्राप्त मार्गदर्शन के बाद उन्हें अपने उज्ज्वल और स्वस्थ भविष्य के लिए किस राह पर चलना चाहिए।
लिखने का आशय है कि बच्चों को यौन व्यवहार के बारे में गलत और बुरी शिक्षा मिलना शुरू हो गई है। अब इसे केवल सही एवं अच्छी यौन शिक्षा से ही शमित किया जा सकता है। इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए अथवा नहीं, यह तो भविष्य की बात है। लेकिन इस विषय पर कम से कम बहस तो शुरू होना ही चाहिए।
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