भोपाल, शब्दघोष। छुटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो साल का सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली हर्षोल्लास के साथ संपन्न हो गया। क्या गांव, क्या शहर और क्या महानगर, हर कहीं बिजली की जगमगाहट देखने को मिली। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी दीप मालाओं की रोशनी से घरों को जगमग करने की परंपराएं बनी हुई हैं, यह प्रसन्नता और संतुष्टि का विषय है। लेकिन अधिकांश शहरी क्षेत्र बिजली की जगमगाहट से ही झिलमिलाते नजर आए। इनमें मिट्टी के दीयों का स्थान लगभग उतना ही रह गया, जितनी धार्मिक परंपराओं के अनुसार उनकी अत्यावश्यकता रह गई है। वरना तो प्रकाश का यह पर्व अब पूरी तरह से बिजली पर निर्भर हो चला है। यदि एक पल के लिए भी दीपावली जैसे पर्व के दौरान बिजली चली जाए, तो मानो बिजली कंपनी और बिजली विभाग पर जनता का नजला फूट पड़ता है। दुर्भाग्यवश कहीं-कहीं अपवाद स्वरूप ऐसा देखने को मिला भी।
लेकिन अब हमें आज से और अभी से ही बिजली का अपव्यय रोकने की ओर उन्मुख हो जाना चाहिए। कुछ लोग सवाल उठा सकते हैं कि यह संदेश तो दीपावली के पहले दिया जाना चाहिए था! तो संभव है नक्कारखाने में तूती की आवाज थोड़ी बहुत तो गूंजती। शायद कुछ लोग बिजली बचाने के उपक्रम में लग जाते। लेकिन हमने यह बात दीपावली के पहले इसलिए नहीं उठाई, क्योंकि वर्ष भर में एक मात्र त्यौहार ऐसा आता है जब हर कोई अपने घरों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और अपने कार्य स्थलों को रोशनी से जगमग होते देखना चाहता है। ऐसे में यदि कोई बिजली बचाने की बात करें तो फिर लोगों का खीझना और क्रोधित होना स्वाभाविक बन जाता है। यह तर्क भी सामने आते कि लोगों को पानी बचाने की सुध होली के समय ही क्यों आती है। इसी प्रकार बिजली बचाने की सनक दीपावली के समय ही क्यों छूटी?
लिहाजा अब बताना उचित रहेगा कि बिजली की दरें महंगी किए जाने को लेकर संबंधित विभाग द्वारा विद्युत नियामक आयोग के समक्ष प्रस्ताव रखा जा चुका है। तर्क दिया गया है कि विद्युत विभाग को 30 हजार करोड रुपए से ज्यादा का नुकसान हो रहा है। इसलिए विद्युत नियामक बोर्ड बिजली की दरें महंगी करने की अनुमति प्रदान करे। ताकि विभाग को हो रहा घाटा पूरा किया जा सके। यह मांग बिल्कुल अनुचित नहीं है। क्योंकि सेवा का क्षेत्र हो या व्यापार का, ज्यादा दिन का घाट संस्था अर्थात संस्थान को लंबे समय तक बचा कर नहीं रख सकता। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि विद्युत विभाग अथवा विद्युत आपूर्ति कंपनियों को भी फायदा भले ना हो, नुकसान तो होना ही नहीं चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने दैनिक उपयोग के दौरान बिजली के अधिकतम बचाव का प्रयास आज से ही शुरू कर दें। सोचना शुरू करें कि बिजली के कौन से स्विच को ऑफ करने के बाद भी हम अपने दैनिक कार्यों को यथावत बनाए रख सकते हैं। जब बिजली की खपत घटेगी, उपलब्धता अधिक रहेगी तो विद्युत विभाग को भी उत्पादन में उद्यम कम करना पड़ेगा और दरों में सहजता बनी रहेगी।
हालांकि मेरा एक विचार यह भी है कि विद्युत विभाग को घाटे का कारण तकनीकी अथवा उपभोक्ता तो बिल्कुल नहीं है। यह घाटा अधिकांशतः उन इलाकों से प्राप्त होता है जहां भारी पैमाने पर बिजली चोरी की जाती है। यह चोरी सामूहिक रूप से विद्युत अधिकारियों की नाक के नीचे, उनकी आंखों के सामने की जाती है। यह बात और है कि अधिकांश बिजली चोरों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त रहने के चलते, वहां कार्रवाई संभव नहीं हो पाती। अनेक स्थानों पर विद्युत विभाग और आपूर्ति कंपनियों के भ्रष्ट कर्मचारियों, अधिकारियों की मिलीभगत भी घाटे का एक बड़ा कारण है।
जैसा कि मैं पूर्व में लिख चुका हूं कि बिजली चोरों को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है। तो यह भी सत्य है कि विद्युत विभाग और बिजली आपूर्ति कंपनी के कुछ भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी बिजली चोरों से मिले हुए हैं। यह लोग साल भर सुनियोजित अवैध वसूली में लगे रहते हैं। इसलिए घाटे का सबसे बड़ा कारण बिजली चोरी ही सामने आता है। लाइन लॉस के अन्य तकनीकी कारण भी हैं, लेकिन वह नुकसान का इतना बड़ा सबब हो ही नहीं सकते, जिनके चलते घाटे का आंकड़ा 30 हजार करोड़ से अधिक तक पहुंच जाए। इसलिए आवश्यक हो चला है कि उपभोक्ताओं के साथ-साथ विद्युत आपूर्ति कंपनियां और विद्युत विभाग को भी आज से और अभी से जग जाना चाहिए। ताकि नुकसान का सबसे बड़ा कारण विद्युत चोरी को रोका जा सके। जहां तक इस चोरी और नुकसान पर स्थाई रोक लगाने की बात है तो इसके लिए सरकार को कड़े कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। मसलन - एक उपाय यह भी हो सकता है कि प्रत्येक आपूर्ति केंद्र को उसकी मांग के अनुरूप बिजली उपलब्ध कराने के बाद यह ताकीद किया जाए कि जितनी बिजली संबंधित अधिकारी के कार्य क्षेत्र को उपलब्ध कराई जा रही है, उसकी शत प्रतिशत वसूली के लिए वही पूरे रूप से जिम्मेदार रहेगा। जब तक इस प्रकार की कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित नहीं की जाएगी, तब तक विद्युत चोरी का मामला रोका जाना असंभव ही बना रहेगा। जबकि सर्व विदित है कि विद्युत विभाग और विद्युत कंपनियों के घाटे का सबसे बड़ा पहलू यही है।
अंत में यही लिखा जा सकता है कि जागरूकता के नाते हम तो बिजली बचाने के स्वस्फूर्त कदम उठा ही लेंगे। विद्युत कंपनियां और विद्युत उत्पादन विभाग को भी अपने गिरेबान में झांक कर देखना होगा। विद्युत नियामक आयोग से आग्रह है कि वह उसके सामने विद्युत दर बढ़ाने के बाबत आए आवेदन पर गौर करते समय यह ध्यान में रखे कि इस घाटे के लिए दोषी ईमानदार उपभोक्ता कम ही है । विद्युत चोरों के साथ-साथ विद्युत कंपनियां और विद्युत उत्पादन विभाग स्वयं अधिक जिम्मेदार है। अतः इन मलाई लूट रहे ते तिगड्ढे को ताकीद किए जाने की आवश्यकता है कि वे ऐसा कोई कृत्य घटित न होने दें, जिसके चलते विद्युत घाटा विकराल हो और ईमानदार उपभोक्ताओं को इसकी अनुचित सजा भुगतनी पड़ जाए।
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